दरअसल, फरवरी 2018 में बीजेपी सांसद संजीव बाल्यान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुजफ्फरनगर दंगे के मामले में हिंदुओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की अपील की थी, जिसके बाद योगी सरकार ने इस मामले सहित 13 बिंदुओं के तहत मुजफ्फरनगर और शामली जिला प्रशासन से डिटेल्स मांगकर मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
केस वापस लेने की अर्जी पर सुनवाई की तारीख अभी तय नहीं हुई है। लेकिन, राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है। राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल ने कहा कि उस वक्त समाजवादी पार्टी की सरकार थी। सपा सरकार ने राजनीतिक बदले के लिए भाजपा नेताओं और हिंदू संगठनों के पदाधिकारियों पर केस दर्ज कराया था। ये फर्जी मुकदमे थे।
क्या इसीलिए सरकार बनी थी?
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा, कमाल है भारतीय जनता पार्टी। क्या इसी के लिए सरकार बनी थी? मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, मंत्री या विधायक हों, सब पर लगे केस वापस ले लिए जाएंगे। क्या इससे अपराधियों का मनोबल नहीं बढ़ेगा? क्या उनको ऐसा नहीं लगेगा कि आपराधिक मुकदमे भी वापस लिए जा सकते हैं? यही वजह है कि एसडीएम और सीओ की गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। तभी यहां पुलिस वालों का एनकाउंटर होने लगा है और महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं।
क्या था मामला ?
27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में सचिन और गौरव नाम के दो युवकों की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। आरोप शाहनवाज कुरैशी नाम के युवक पर लगा था। इसके बाद 7 सितंबर 2013 को नगला मंदोर गांव के इंटर कॉलेज में जाटों ने महापंचायत बुलाई। महापंचायत में विधायक सुरेश राणा, कपिल देव अग्रवाल, संगीत सोम, विहिप की साध्वी प्राची, बाबू हुकुम सिंह, भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत और सैकड़ों भाजपा नेता शामिल हुए थे। इस महापंचायत के बाद दंगे भड़क गए थे, इनमें 65 लोगों की जान गई थी। हजारों लोग बेघर हो गए थे। इस मामले में शीखेड़ा थाना इंचार्ज ने खुद ही नोटिस लेकर संगीत सोम, कपिल देव अग्रवाल, सुरेश राणा, साध्वी प्राची और दूसरे लोगों पर भड़काऊ भाषण देकर समुदाय विशेष के खिलाफ भड़काने का केस दर्ज कराया था।