कोलंबो: चीन का श्रीलंका में बढ़ते हस्तक्षेप को देखते हुए श्रीलंका ने अपनी नई विदेश नीति के तौर पर ‘इंडिया फर्स्ट अप्रोच’ की नीति को अपनाने का निर्णय किया हैं। श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबेज ने नई दिल्ली के रणनीति सुरक्षा हितों की रक्षा पर मीडिया से बात करते हुए इस बात की घोषणा की। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें 14 अगस्त को विदेश मंत्रालय का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था। कोलंबेज पहले ऐसे विदेश सचिव बने हैं जिनकी सैन्य पृष्ठभूमि है। श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबेज के इस बयान को चीन के लिए बड़ा झटका बताया जा रहा हैं।
ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जो भारत के खिलाफ़ हो
बुधवार को दिए अपने एक मीडिया में इंटरव्यू में कोलंबेज ने कहा कि ‘हम अपनी नई क्षेत्रीय विदेश नीति के तौर पर ‘इंडिया फर्स्ट अप्रोच’ अपनाएंगे।’ उन्होंने आगे कहा ‘इसका मतलब है कि श्रीलंका ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जो भारत के रणनीतिक सुरक्षा हितों के लिए हानिकारक हो।’ कोलंबेज 2012-14 के मध्य श्रीलंका की नौसेना के प्रमुख रहे और बाद में विदेशी नीति विश्लेषक बन गए।
भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जाना स्वीकार नहीं
कोलंबेज ने कहा कि ‘चीन दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता है। 2018 में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थी। इसका मतलब है कि हम दो आर्थिक दिग्गजों के बीच हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि श्रीलंका यह स्वीकार नहीं कर सकता, उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए और वह स्वीकार नहीं करेगा कि उसका इस्तेमाल किसी अन्य देश-विशेष तौर पर भारत के खिलाफ कुछ करने के लिए किया जाए।
हंबनटोटा के लिए सबसे पहले भारत को की थी पेशकश
कोलंबेज ने कहा कि ‘श्रीलंका ने हंबनटोटा की पेशकश पहले भारत को की थी। उन्होंने कहा, भारत ने जिस भी कारण से उसे नहीं लिया और तब वह एक चीनी कंपनी को गया। अब हमने हंबनटोटा बंदरगाह की 85 प्रतिशत हिस्सेदारी चाइना मर्चेंट होल्डिंग कंपनी को दे दी हैं। वह व्यावसायिक गतिविधियों तक सीमित होना चाहिए। यह सैन्य उद्देश्यों के लिए बिल्कुल भी नहीं है।’
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि पोर्ट वर्कर ट्रेड यनियनों के विरोध के बावजूद, राष्ट्रपति राजपक्षे कोलंबो पोर्ट के पूर्वी टर्मिनल को लेकर भारत के साथ हस्ताक्षरित सहयोग पर आगे बढ़ेंगे।