नई दिल्ली। अब महिलाओं के खिलाफ होने वाली ऑनलाइन हिंसा और उत्पीड़न एक बड़ी समस्या बन चुकी है।महिलाओं के खिलाफ जिस तरह रोजमर्रा के जीवन में हिंसा और गाली-गलौज होती है, उसी तरह ऑनलाइन हिंसा भी होती है। नीति-निर्माताओं और सोशल मीडिया कंपनियों ने इस समस्या को समझा और और उपाय भी बना लिया है। ताकि महिलाएं ऑनलाइन कम्युनिकेशन करते हुए खुद को सुरक्षित महसूस करें। पूरी दुनिया के साथ ही भारत भी इंटरनेट क्रांति के दौर में इस समय हर चौथा भारतीय सोशल मीडिया से जुड़ा है, और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। इनमें महिलाओं की खासी संख्या है।
ऑस्ट्रेलिया में एक राज्य है- क्वीन्सलैंड. यहीं पर मौजूद है क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी या QUT. यहां के रिसर्चर्स ने एक ऐसा अल्गोरिथ्म बनाया है, जिसकी मदद से महिलाओं को ऑनलाइन उत्पीड़न से मुक्ती मिल सकती है। ये सिस्टम ट्विटर पर लाखों-करोड़ों ट्वीट में से गाली-गलौज से भरी उन पोस्ट को ढूंढ निकालता है, जिनका मक़सद औरतों को नुकसान पहुंचाना होता है।
जानिए औरतों के लिए दुखद जगह क्यों है ट्विटर
आखिर औरतों के लिए दुखद जगह ट्विटर को क्यों माना जाता है। 2018 की ऐमनेस्टी इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक, ट्विटर पर औरतों को हर 30 सेकंड में एक गाली पड़ती है। और ये गालियां सिर्फ उनके ओपिनियन को लेकर नहीं होतीं, बल्कि उनके जेन्डर, धर्म, कास्ट, मैरिटल स्टेटस और बाकी चीजों को भी टारगेट करती हैं।
QUT का अल्गोरिथ्म क्यों है अलग
लोग सोचते है कि QUT का अल्गोरिथ्म एक सिम्पल सर्च से अलग कैसे है? तो बता दे कि QUT का बनाया हुआ अल्गोरिथ्म उसी तरह के पोस्ट को पहचानने के लिए डिजाइन किया गया है। यूनिवर्सिटी की टीम का कहना है कि औरतों को ऑनलाइन हेट से बचाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इनका मशीन-लर्निंग सोल्यूशन इस्तेमाल करें। और ये सिस्टम दिक्कत वाले पोस्ट को अपने आप ढूंढकर सोशल मीडिया कंपनी को इन्फॉर्म कर सकता है।
सर्च रिज़ल्ट की तरह ये सिर्फ शब्द पर फ़ोकस नहीं करता, बल्कि उसके पीछे के कॉन्टेक्स्ट, पोस्ट की टोन और पोस्ट लिखने वाले के इरादे को भी देखता है। मान लीजिए किसी ट्वीट मे ‘स्लट’ या ‘रेप’ जैसा कोई शब्द आया, मगर जरूरी नहीं कि पोस्ट लिखने वाला औरतों पर हमला ही बोल रहा हो. हो सकता है कि वो सिर्फ टेढ़ी मार रहा हो या फिर किसी दूसरी पोस्ट के कॉन्टेक्स्ट में ऐसे शब्द ट्वीट में इस्तेमाल हुए हों। QUT की टीम का कहना है कि ऐसे केस में ये अल्गोरिथ्म उस पोस्ट को हेटफ़ुल कॉन्टेन्ट की तरह नहीं देखेगा।
ऐसे ही कुछ पोस्ट होती हैं, जिनमें आम तौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले मिसोजिनिस्टिक शब्द तो गायब रहते हैं, मगर पोस्ट लिखने वाले का मक़सद औरतों पर हमला करना ही होता है। ऐसे में ये अल्गोरिथ्म कॉन्टेक्स्ट को देखकर पता लगाता है कि पोस्ट औरत-विरोधी है या नहीं।
जानिए कैसे बना ये डीप लर्निंग अल्गोरिथ्म?
उदाहरण के तौर पर, अंग्रेजी का एक फ्रेज़ है, “गो बैक टू द किचन.” इसका हिन्दी में ट्रांसलेशन है, “किचन में वापस जाओ.” ऐसे तो इसमें कोई दिक्कत नहीं लग रही, मगर इसका इस्तेमाल अक्सर औरतों को चुप कराने के लिए या फिर मज़ाक उड़ाने के लिए होता है। तब इसका मतलब ये बन जाता है कि औरतों की जगह सिर्फ और सिर्फ किचन में है। वो बाक़ी और कुछ नहीं कर सकतीं. QUT की टीम कहती है कि ऐसे मे कॉन्टेक्स्ट को देखकर अल्गोरिथ्म इसे मिसोजिनिस्टिक ही मार्क करेगा।
अब जानते है कि कैसे बना ये डीप लर्निंग अल्गोरिथ्म?
एक होती है लिखने-पढ़ने वाली भाषा और एक होती है बोल-चाल वाली या सोशल मीडिया पर लिखी जाने वाली बोली. दोनों में बहुत फ़र्क है. मगर एक मशीन के लिए ये फ़र्क समझना आसान काम नहीं है।ऊपर से जब हर चीज़ मे कॉन्टेक्स्ट और इरादे का भी रोल आ जाए, तो मशीन के लिए और भी ज़्यादा दिक्कत है।
ऐसे पाता चलेगा पोस्ट औरत-विरोधी है या नहीं
अपने मशीन-लर्निंग सिस्टम को इन सब चीजों के बारे मे समझाने के लिए पहले QUT की टीम ने एक टेक्स्ट माइनिंग सिस्टम बनाया, जिसमें अल्गोरिथ्म काम करते-करते सीख गया है।
इस अलगोरिथ्म को बनाने के लिए QUT की टीम ने 10 लाख ट्वीट्स निकालीं. इनके मॉडल ने 75% एक्यूरेसी के साथ इन ट्वीट्स में से औरत-विरोधी पोस्ट ढूंढ निकालीं. टीम का कहना है कि ये आंकड़ा दूसरे सोशल मीडिया स्कैन करने वाले सिस्टम से कहीं ज़्यादा अच्छा है। इनका मानना है कि आगे चलकर इसी मॉडेल को रेसिज़्म, होमोफोबिया और विकलांगों के खिलाफ अभद्र पोस्ट को ढूंढने में भी किया जा सकता है। अब सोशल मीडिया पर औरतों के खिलाफ की अभद्र टिप्पणी करेगें तो पकड़ लेगी मशीन।
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