डेस्क। आज कल लोगों की इतनी भाग दौड़ वाली जिंन्दगी हो गई है कि किसी को किसी की चिंता नहीं है । और पैसा कमाने के चक्कर में अपने आप का भी ख्याल नही रख पाते है। यही वजह है कि अस्त-व्यस्त जीवनशैली में और एकल परिवार के बढ़ते ट्रेंड के कारण अकेलेपन से जूझते लोग, आरामतलबी और निष्क्रिय जीवनचर्या और अनहेल्दी डाइट के चलते लोग एंग्जाइटी से ग्रस्त हो रहे हैं। यह ऐसा रोग है, जिसकी वजह से पेशेंट को अपनी नॉर्मल लाइफ भी जीने में परेशानी होती है। ऐसे में जरूरी है कि एंग्जाइटी के लक्षण नजर आते ही उसका ट्रीटमेंट करवाया जाए।
जाने घबराहट क्या है ?
घबराहट का अर्थ है किसी बात के होने या होने की सम्भावना को लेकर डरा हुआ और परेशान महसूस करना। एक घबराया हुआ व्यक्ति तनाव में रहता है और आसानी से चिंतित हो जाता है।
चिंता का इलाज
कुछ लोगों को घबराहट इतनी हो जाती है कि वह ठीक तरह से सोचने, समझने और काम करने की हालत में नहीं रहते, जबकि उस परिस्थिति में समझदारी और सूझ-बूझ से काम लेने की आवश्यकता होती है। हम सभी लोगों को कभी न कभी घबराहट होती है लेकिन कुछ लोग हमेशा ही घबराए हुए रहते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति आराम नहीं कर पाता है और उसका दिल समान्य से तेज़ गति से धड़कता है। इससे आपके काम, रिश्तों और नींद पर प्रभाव पड़ता है।
नींद की कमी
घबराहट बिना किसी वजह के भी हो सकती है या किसी स्पष्ट कारण से भी हो सकती है। घबराहट के साथ कई अन्य शारीरिक लक्षण भी हो सकते हैं। अधिकतर यह लक्षण ह्रदय, फेफड़ों, तंत्रिका तंत्र और पेट व आंतों से सम्बंधित होते हैं।
एंग्जायटी क्या होती है
एंग्जायटी एक प्रकार का नेगेटिव इमोशन है जैसे गुस्सा, डिसगस्ट, गिल्ट, दुःख. नेगेटिव इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि ये हमें अपने मन के लेवल पर अकेला, होपलेस महसूस करवाती है. ये हमें शारीरिक तौर पर महसूस हो सकती है, मानसिक तौर पर हो सकती है या दोनों का कॉम्बिनेशन भी हो सकती है।शारीरिक तौर पर घबराहट, तेज़ धड़कन महसूस होना, प्यास ज़्यादा लगना, हाथ पैर फूल जाना, चक्कर आना और सिर में दर्द रहना
-मानसिक तौर पर अप्रिय घटना के बारे में चिंता करते रहना. किसी मैटर पर बहुत ज्यादा सोचना. याददाश्त पर असर पड़ना, फोकस न कर पाना।
डर में डेंजर प्रेजेंट में होता है. उसमें धड़कन कुछ समय के लिए बढ़ती है. हाथ-पैर में खून का दौरान कुछ समय के लिए बढ़ जाएगा. पर कुछ समय बाद हम उसे ओवरकम कर लेंगे और वो ठीक हो जाएगा. एंग्जायटी में काफ़ी लंबे समय तक ये लक्षण बने रहते हैं. बार-बार उभर आते हैं।
एंग्जायटी अगर आसानी से कंट्रोल न हो या इसके एपिसोड्स रेगुलर हों तो क्लिनिकल एंग्जायटी डिसऑर्डर का खतरा हो सकता है। नॉर्मल एंग्जायटी लाइफस्टाइल में मामूली बदलाव करके कंट्रोल में की जा सकती है. लेकिन क्लिनिकल एंग्जायटी के लिए ट्रीटमेंट लेना ज़रूरी होता है।
ये तीन तरह के होते है
जेनरलाइज्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर —इसमें आप डे टू डे लाइफ से जुड़ी चीज़ों के बारे में चिंता करते रहते हैं बच्चों की पढ़ाई, पैसे की चिंता. और वो इस लेवल पर हो जाती है कि आप 24 घंटे उसके बारे में सोचते रहते हैं।
फ़ोबिया एक स्पेसिफ़िक ऑब्जेक्ट या सिचुएशन पर फोकस्ड-
ये अलग तरह की एंग्जायटी प्रोड्यूस करते हैं. ये अटैक के फॉर्म में महसूस होती है. पैनिक अटैक के फॉर्म में. फिर दूसरा अटैक न आ जाए इस बारे में आप डरते रहते हैं।
ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर —आपने सुना होगा लोग बार-बार हाथ धोते हैं. उनके दिमाग में विचार आते हैं, वो तब तक आते हैं जब तक कोई कंपल्सिव एक्ट न कर दें. जैसे अगर मैंने टेबल छू ली तो कहीं इन्फेक्शन न हो जाए. मैं मर न जाऊं. तो वो बार बार हाथ धोते हैं. कुछ लोग बार-बार चेक करते हैं कि गैस बंद की कि नहीं, या दरवाज़े की कुंडी लगाई या नहीं।
इन तीनों ही तरह की एन्जायटी का इलाज साईकायट्रिस्ट करते हैं।
यानी अगर आपको एंग्जायटी की दिक्कत है तो उसका इलाज मुमकिन है. लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है इसकी पहचान करना. डिनायल मोड से बाहर आना कि हमें तो मेंटल दिक्कतें नहीं हो सकती हैं. साथ ही जरूरी है कि दोस्तों का, परिवार का साथ मिले. इस पर खुलकर बात करने की जरूरत है ताकि लोग जागरूक हो सकें. अपना और अपनों के तन और मन दोनों की सेहत का ख्याल रखें।
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