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जानें, गुस्से का मनोविज्ञानिक कारण और असर

नई दिल्ली: क्रोध एक प्राकृतिक भावना है. ईसा पूर्व 200 वर्षों से 200 ईसवी तक के काल के बीच लिखे गए नाट्य शास्त्र में क्रोध को एक ‘रस’या नैसर्गिक भाव कहा गया है. अमेरिकन फिजियोलॉजिकल एसोसिएशन ने ‘गुस्से को विपरीत परिस्थितियों के प्रति एक सहज अभिव्यक्ति कहा है. इस उग्र प्रदर्शन वाले भाव से हम अपने ऊपर लगे आरोपों से अपनी रक्षा करते हैं. लिहाजा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए क्रोध भी जरूरी होता है.

आधुनिक जीवनशैली किसी भी व्यक्ति को तनाव में धकेल सकती है. अब जबकि हजारों लोगों को अपने रोजगार और घरों से हाथ धोना पड़ रहा है और यहां तक कि सेवानिवृत्त लोगों की सुरक्षित राशियां भी उथल-पुथल के कारण गायब होती जा रही हैं. इस लिहाज से इस काल को ‘ऐज ऑफ एंग्जाइटी’ या व्यग्रता का युग कहा जा सकता है. इसके विपरीत यह भी सच है कि कुछ लोग चाहे उनकी आर्थिक या पारिवारिक स्थिति कैसी भी हो, हमेशा तनाव में रहते हैं दरअसल, वे पैदाइशी तनावग्रस्त होते हैं.

बच्चों में अपना पैदाइशी स्वभाव होता है

हार्वर्ड के मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर जेरोम कगान और उनके सहयोगियों ने गत बीस वर्षों से बचपन से लेकर ऐसे हजारों लोगों का अध्ययन किया है. इस दिशा में चार विस्तृत शोध नतीजे सामने आ रहे हैं. जिनमें कगान की तरफदारी में दो हार्वर्ड से और दो मैरीलैंड यूनिवर्सिटी से हैं. जो कगान के ही एक पूर्व विद्यार्थी नेथन फॉक्स की तरफदारी भी करते हैं. मामूली बदलावों के अतिरिक्त दोनों अध्ययन एक ही नतीजे पर पहुंचे हैं. नतीजा यह है कि बच्चों में अपना पैदाइशी स्वभाव होता है और 15 से 20 प्रतिशत बच्चे नए लोगों और परिस्थितियों के प्रति अलग व्यवहार करते हैं. ऐसा व्यवहार करने वाले बच्चे अधिक तनावग्रस्त रहते हैं.

तेज-तर्रार व्यवहार से तनावग्रस्त होने से बचे

इन अध्ययनों में ये भी पाया गया कि बच्चों में स्वभाव बेशक एक सा हो, लेकिन उनका बर्ताव अलग हो सकता है. कोई व्यक्ति किसी अन्य के तेज-तर्रार व्यवहार को बेशक तनावग्रस्त होने की संज्ञा दे लेकिन दूसरे के लिए यह व्यवहार रोचक हो सकता है.कुछ व्यक्ति अपनी बुरी आदतों को दबाकर आराम से रहते हैं लेकिन अन्य इसकी परवाह नहीं करते.

गुस्से के प्रमुख कारण

सोना अचेतन की अवस्था होती है. सोने से शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है. सोने के दौरान लगातार इस्तेमाल होने वाले मांसपेशियां और जोड़ रिकवर होते हैं. रक्तचाप कम होता है और हृदय गति कम होती है. उसी दौरान शरीर में ग्रोथ हार्मोन का स्राव होता है. इस दौरान ही दिमाग रोजमर्रा की सूचनाओं को एकत्रित करने का काम करता है. तनाव लंबे समय तक कार्य जीवनशैली के कारण सोने की समस्याएं होती हैं. बिना पूरी नींद के दिमाग और शरीर सही तरीके से फंक्शन नहीं कर पाता. पर्याप्त नींद न लेने से कई तरह की बीमारियां होती हैं. स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त नींद और आराम आवश्यक है.

अकेलापन

किसी नई जगह पर अकेले रहना गुस्से का एक कारण होता है. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिन लोगों के दोस्त कम होते हैं सामान्यत: उन्हें गुस्सा जल्दी आता है. ऐसे बच्चे जो कि न्यूक्लियर फैमिली में पैदा होते हैं और उनके माता या पिता में से कोई एक मानसिक रूप से पीड़ित होता है. मानसिक अनियमितता की वजह से वे गुस्सैल हो जाते हैं. वे गाली देने लगते हैं भाई-बहन से मारपीट करने लगते हैं और चीजों को तोड़ते हैं. मनोचिकित्सकों का कहना है कि अगर आपका बच्चा गुस्सा ज्यादा करता है मतलब वह कहीं न कहीं हताश है.

ज्यादा टीवी देखना

हिंसक प्रोगाम देखना, क्राइम शो आदि बच्चों के मन-मस्तिष्क को पूरी तरह प्रभावित करते हैं. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि कई बार युवा हिंसा के प्रति संवेदनशील नहीं रहते और उन्हें किसी कार्य का प्रतिरोध करने के लिए गुस्सा नाजायज नहीं लगता.

महत्वाकांक्षा

कॉरपोरेट दुनिया ने प्रगति के दो पैमाने बना दिए हैं- पहला प्रदर्शन और दूसरा कम समय में काम को बेहतर तरीके से कर सकने की क्षमता. इस पैरामीटर पर खरा उतरने की कोशिश में कई बार लोग हताश और गुस्सैल प्रवृत्ति के हो जाते हैं.  मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि दूसरों की भावनाओं की कद्र न करना, लोगों के अभिवादनों के प्रति संवदेनशीलता कम होना, भौतिक सुख-साधनों को पाने का लालच ज्यादा बढ़ना हमेशा गुस्से के कारण बनते हैं. आज के दौर में कई प्रोफेशन ऐसे हो गए हैं, जिनमें कई बार उपभोक्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ता है और उनकी सही-गलत बातों को मुस्कुराकर सुनना पड़ता है. ऐसे में कई बार कुछ न कह सकने की हताशा गुस्से में परिणति हो जाती है.