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U.P. पुलिस का दावा- हाथरस मामले को लेकर प्रदेश में दंगा फ़ैलाने की है साज़िश, इस तरह हुआ खुलासा

लखनऊ: हाथरस में दलित युवती से गैंगरेप और मौत की घटना के मामले को लेकत उत्तर प्रदेश पुलिस ने सोमवार को बड़ा खुलासा किया। इंटेलीजेंस से मिले इनपुट के आधार पर पुलिस ने दावा किया है कि घटना के बाद रातों-रात एक वेबसाइट ‘जस्टिस फॉर हाथरस’ बनाई गई। इसके जरिए मुख्यमंत्री योगी के गलत बयान प्रसारित किए गए, ताकि माहौल बिगड़े। रविवार रात पुलिस ने वेबसाइट और इससे जुड़ी लोकेशन पर छापेमारी की। लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में केस भी दर्ज कराया गया। इसमें प्रदेश में जातीय और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने, अफवाहों और फर्जी सूचनाओं के जरिए अशांति फैलाने करने की साजिश रचने जैसे आरोप लगाए गए हैं।

ऑनलाइन वाइरल हो रहें हैं मुख्यमंत्री के फर्जी बयान

पुलिस ने बताया कि वेबसाइट पर स्क्रीनशॉट में ब्रेकिंग न्यूज लिखकर मुख्यमंत्री की फोटो के साथ बाकायदा उनका फर्जी बयान जारी किया गया। ये स्क्रीनशॉट वॉट्सऐप समेत अन्य सोशल मीडिया के अकाउंट पर शनिवार को तेजी से वायरल किए गए। एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट फॉर इंडिया (पीएफआई) समेत कुछ अन्य संगठन प्रदेश में माहौल बिगाड़ने की लगातार साजिश कर रहे हैं। इस मामले में उनकी भूमिका की गहनता से जांच की जा रही है।

जिन्हें विकास अच्छा नहीं लग रहा, वे दंगा कराना चाहते हैं – सीएम योगी आदित्यनाथ

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में कहा कि जिसे विकास अच्छा नहीं लग रहा, वे देश और प्रदेश में जातीय, सांप्रदायिक दंगा भड़काना चाहते हैं, इसकी आड़ में विकास रुकेगा। दंगे की आड़ में लोगों को राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका मिलेगा, इसलिए नए-नए षड्यंत्र करते रहते हैं।

चौकी प्रभारी ने दर्ज कराया केस

लखनऊ के डीसीपी सोमेन वर्मा ने बताया कि चौकी प्रभारी (नरही) भूपेंद्र सिंह की शिकायत पर हजरतगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज की गई है। आरोपियों की तलाश जारी है। साइबर सेल की टीम को भी जांच में लगाया गया है। जिस चैनल का स्क्रीनशॉट वेबसाइट पर लगाया गया, उससे भी जांच की गई। न्यूज चैनल ने इसका खंडन किया है। मुन्ना यादव नाम के बने अकाउंट से फेसबुक पर सीएम का एक फर्जी बयान पोस्ट किया गया था। इसमें सीएम की फोटो भी लगाई गई थी।

PFI समेत कुछ और संगठनों की भूमिका पर जांच जारी

पुलिस ने इस मामले पर दावा किया है कि इस साजिश में पीएफआई समेत कुछ और संगठनों की भूमिका की भी पड़ताल की जा रही है। ऐसी ही फर्जी पोस्ट वायरल कर पीड़ित की जीभ काटने, अंग भंग करने और सामूहिक दुष्कर्म से जुड़ी तमाम अफवाहें उड़ाकर प्रदेश में नफरत फैलाने की कोशिश की गई। ऐसी अफवाहें फैलाने के लिए कई वैरिफाइड सोशल मीडिया अकाउंट का भी इस्तेमाल किया गया। जांच एजेंसियां वैरिफाइड अकाउंट का भी ब्योरा तैयार कर रही हैं।

यूपी सरकार लिखा चुकी है पीएफआई को बैन के लिए केंद्र को पत्र

पीएफआई संगठन के जरिए पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की आवाज को उठाने का दावा किया जाता है। इसकी स्थापना 2006 में हुई थी। दावा किया जाता है कि वर्तमान में देश के 23 राज्यों तक पीएफआई पहुंच चुका है। पिछले साल नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद पीएफआई पर लखनऊ समेत कई शहरों में दंगा भड़काने का आरोप लगा था। तब यूपी सरकार ने इस पर बैन लगाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र भी लिखा था।

 

 

 

 

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